1) प्रेमः

 1) प्रेमः

1) प्रेमः

अल्लाह से प्रेम करने का अर्थः

अल्लाह से प्रेमः

अर्थात दिल का अल्लाह तआला से मानूस होना और उस की ओर झुकना और जो अल्लाह चाहे उस पर तुरंत हामी भरना,और दिल पर अल्लाह की याद का ग़ालिब होना।

अल्लाह से प्रेम करने की हक़ीक़त

अल्लाह की मुहब्बत का अर्थ उस की इबादत,विनम्रता,और उस के सम्मान से मुहब्बत करना,अर्थात मुहब्बत करने वाले के दिल में महबूब अल्लाह की महानता और उस का सम्मान हो,जो इस बात का तक़ाज़ा करे कि बंदा उस के आदेश का पालन करे और जिन चीज़ों से उस ने रोका है रुक जाये,और यही मुहब्बत ईमान और तौहीद की असल है,और इस की इतनी प्रतिष्ठायें हैं जिसे गिना नहीं जा सकता, और अल्लाह की मुहब्बत में से यह भी है कि उन जगहांे,ज़मानों(समय) और लोगों अथवा कार्यांे और कथनों आदि उन चीज़ों से प्रेम किया जाये जिन से अल्लाह तआला प्रेम करता है।

जैसा कि यह अनिवार्य है कि अल्लाह से प्रेम खालिस(शुद्व) अकेले अल्लाह के लिये हो,और यह फितरी मुहब्बत के विपरित नहीं है,जैसे बच्चे का अपने बाप से और बाप का अपने बच्चे से, और शिक्षक का अध्यापक से और अध्यापक का शिक्षक से प्रेम करना,या जैसे खाने, पीने, शादी, पनहाव और दोस्तों इत्यादि से प्रेम करना ।

हाँ हराम मुहब्बत अल्लाह की मुहब्बत में शिर्क करना है,जैसे मुश्रिकों का अपने बुतों और अपने वलियों से मुहब्बत करना,या जिन चीज़ों को नफ्स महबूब रखे उसे उन चीज़ो पर मुक़द्दम रखना जिन्हे अल्लाह महबूब रखता है,या उन ज़मानों (समय) जगहांे,और लोगों अथवा कार्यांे और कथनों आदि उन चीज़ों से प्रेम करना जिन से अल्लाह तआला प्रेम नहीं करता है,और यह बर्बादी है,अल्लाह तआला ने फर्मायाः {और कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अल्लाह के साझीदार दूसरों को ठहरा कर उन से ऐसा प्रेम रखते हैं जैसा प्रेम अल्लाह से होना चाहिये,और ईमान वाले अल्लाह से प्रेम में सख्त होते हैं“।}[अल बक़राः 165].

अल्लाह तआला से मुहब्बत की प्रतिष्ठाः

1- यही असल तौहीद है,और तौहीद की रूह यह है कि अकेले अल्लाह तआला के लिये मुहब्बत को खालिस किया जाये,बल्कि यही वास्तविक इबादत है,और तौहीद उस समय तक पूरा नहीं होगा जब तक कि बंदे की मुहब्बत अपने रब के लिये पूरी न हो जाये और सब मुहब्बत की जाने वाली चीज़ों से आगे और उन पर ग़ालिब न आ जाये,और उन पर इस का हुक्म न चले,वह इस प्रकार कि जिन चीज़ों को बंदा महबूब रखता है उन्हें इस मुहब्बत के अधीन करे जिस में बंदे की खुशी और उस की कामयाबी छुपी हुयी है।

2- दुखों के समय मुहब्बत करने वाले को तसल्ली मिलती है,मुहब्बत करने वाला मुहब्बत की लज़्ज़त के कारण अपने ऊपर आने वाले दुखों को भूल जाता है,और उस के लिये परेशानियों का झेलना सरल हो जाता है।

मुहब्बत,भय,और आशा जैसी की जाने वाली अल्लाह की कोई इबादत नहीं है। अल्लाह से मिलने का शौक़ ऐसी हवा है जो दिल पर चल कर दुनिया की चमक को समाप्त कर देती है।

3- पूर्ण नेमतें और अधिकतर प्रसन्नताः यह अल्लाह तआला की मुहब्बत के बिना प्राप्त नहीं हो सकती,तो दिल बेनियाज़ नहीं हो सकता, और उस की दोस्ती पूरी नहीं हो सकती और न वह आसूदा हो सकता है मगर अल्लाह की मुहब्बत से और उस की ओर मुतवज्जेह हो कर,अगर उसे मज़ा करने की सारी चीजें़ मिल जायें तो वह न तो मानूस होगा और न ही वह मुतमइन होगा मगर अल्लाह तआला की मुहब्बत से,अल्लाह तआला की मुहब्बत नफ्सों के सुकून का कारण है,और साफ सुथरे दिलों,पविन्न रूहांे, पाकीज़ा अक़्लों के निकट अल्लाह तआला की मुहब्बत,उस की उनसियत और उस से मिलने के शौक से अधिक मीठी,लज़ीज़,पविन्न,खुश करने वाली और अधिक बेहतर कोई चीज़ नहीं है,और वह

मिठास जिसे मोमिन अपने दिल में महसूस करता है हर मीठी चीज़ से उत्तम है,और उसे जो मज़ा इस कारण हासिल होगा वह हर मज़े से अच्छा और हर एक लज़्ज़तों से बढ़ कर होगा। «तीन चीज़ें जिस के अन्दर पाई जायेंगी वह उन के ज़रिये ईमान की मिठास पालेगाः अल्लाह और उस के रसूल उस के निकट सब से अधिक प्रिय हों,आदमी किसी से मुहब्बत न करे मगहर अल्लाह तआला के लिये,और कुफ्र में लौटने को ऐसे ही नापसंद करे जब कि अल्लाह तआला ने उसे बचा लिया है जैसे वह आग में डाले जाने को नापसंद करता है।»
(बुखारी,मुस्लिम,नसाई).

जिसे अल्लाह की मुहब्बत से सुकून और उनसियत न हो संसार में उस से अधिक कोई बदबख्त नहीं है.

अल्लाह की मुहब्बत प्राप्त करने वाले कारणः

हमारा रब जो सर्वशक्तिमान है वह उस से पे्रम करता है जो अल्लाह से प्रेम करता है और उस की निकटता ढूँडता है,और अल्लाह की मुहब्बत की प्राप्ति उस समय होगी जब बंदा अपने रब से हर एक चीज़ से अधिक प्रेम करे,अल्लाह की मुहब्बत हासिल करने के कारण विस्तार से इस प्रकार हैंः

1- कुऱ्आने करीम की तिलावत गौरो फिक्र और उस के अर्थाें और मतलब में विचार के साथ करना,जो व्यक्ति अल्लाह की किताब पर अमल करता है और उस की ओर ध्यान देता है तो उस के दिल में अल्लाह की मुहब्बत बैठ जाती है।

2- फर्ज़ नमाज़ोें के बाद नफ्ल नमाज़ के ज़रिये अल्लाह की निकटता प्राप्त करना।

«मेरा बंदा नफ्लों के ज़रिये मेरी निकटता ढूँडता रहता है यहाँ तक कि मैं उस से मुहब्बत करने लगता हूँ और जब मैं उस से मुहब्बत करने लगता हूँ तो मैं उस का वह कान हो जाता हूँ जिस से वह सुनता है और उस की आँख हो जाता हूँ जिस से वह देखता है और उस का हाथ हो जाता हूँ जिस से वह पकड़ता है और उस का पैर बन जाता हूँ जिस से वह चलता है,और अगर वह मुझ से माँगे तो मैं अवश्य दूँगा,और अगर वह मेरी पनाह माँगे तो अवश्य मैं उसे पनाह दूँगा“।» (हदीसे कु़दसी,बुखारी)

3- ज़ुबान,दिल और अमल से हर समय हर हाल में अल्लाह का जि़क्र करना।

4- जिन चीज़ों को अल्लाह पसंद करता है उन्हें नफ्स की इच्छाओं और हवस पर तरजीह देना।

{अल्लाह उन से प्रेम करता है और वह अल्लाह से प्रेम करते हैं“।} [अल माइदाः 54].

5- दिल का अल्लाह तआला के नामों,उस की विशेषताओं का पढ़ना और मुताला करना अथवा उस के विषय में जानकारी प्राप्त करना।

6- अल्लाह तआला की भलाई,उस का एहसान, और उस की ज़ाहिरी और छिपी हुयी नेमतों को देखना।

7- पूर्ण प्रकार से दिल को अल्लाह के दानों हाथों के बीच विनय कर देना।

8- रात की अंतिम तिहाई में जब हमारा पालनहार निचले आसमान पर उतरता है उस समय अल्लाह तआला के साथ एकांत में होना,अल्लाह तआला के साथ तनहाई मे उस से गुप्तवार्ता (सरगोशी) करे,उस की किताब की तिलावत करे और अदब के साथ खड़े हो कर नमाज़ पढे़ फिर तोबा और क्षमा माँग कर उसे संपन्न करे।

9- (अल्लाह से) मुहब्बत करने वाले और सच्चों के संग बैठना,और उन की अच्छी बातों को ऐसे चुन लेना जैसे अच्छे फलों को चुन कर ले लिया जाता है,और उन के बीच चुप रहना,हाँ जब बोलने की आवश्यक्ता हो और यह स्पष्ट हो जाये कि यहाँ अधिक की गुन्जाइश और इस में लोगों के लिये लाभ है।

10- हर उन कारणों से दूर रहना जो दिल और अल्लाह के बीच आड़े आयें।

जब अल्लाह तआला बंदे से मुहब्बत करता है तो उस से बंदे को क्या लाभ मिलते हैंः

जिस व्यक्ति से अल्लाह तआला मुहब्बत करता है उसे हिदायत देता है और उसे अपने क़रीब करता है,नबी ने फरमायाः «अल्लाह तआला फरमाता हैः मैं अपने बंदे के साथ उस के गुमान अनुसार मामला करता हूँ,जब वह मुझे याद करता है तो मैं उस के साथ होता हूँ,अगर वह मुझे अपने दिल में याद करता है तो मैं भी उस को अपने दिल में याद करता हूँ,और अगर वह भरी जमात में याद करता है तो मैं उस से उत्तम जमात में याद करता हूँ,अगर वह मुझ से एक बालिश्त क़रीब होता है तो मैं उस से एक हाथ क़रीब होता हूँ और अगर वह मुझ से एक हाथ बराबर क़रीब होता है तो मैं उस से एक मीटर के बराबर क़रीब होता हूँ,और अगर वह मेरे पास चल कर आता है तो मैं उस के पास दौड़ते हुये चला आता हूँ» (बुखारी).

जब जब बंदा अपने रब से डरेगा अधिक हिदायत की ओर आगे बढ़ेगा,और जब जब अल्लाह तआला उस से प्रेम करेगा उस की हिदायत में बढ़ोतरी करेगा,और जब उसे हिदायत मिल जायेगी तो उस की परहेज़गारी भी बढ़ जायेगी।

जिस व्यक्ति से अल्लाह तआला प्रेम करता है धरती पर वह मक़बूल हो जाता हैः

अर्थात जिस बंदे से अल्लाह तआला मुहब्बत करता है वह लोगों में मक़बूल हो जाता है, लोग उस की ओर झुकते हैं,उस से प्रसन्न होते हैं, उस की प्रशंसा करते हैं,और काफिर के अतिरिक्त हर एक चीज़ उस से प्रेम करती है,क्यांेकि वह अल्लाह ही से मुहब्बत नहीं करता तो वह अल्लाह के चहेतों से कैसे मुहब्बत करेगा?!रसूलुल्लाह ने फरमायाः «अल्लाह तआला जब किसी बंदे से प्रेम करता है तो जिब्रील को बुलाता है,और कहता हैः मैं फलाने से प्रेम करता हूँ तुम भी उस से प्रेम करो,फरमायाः कि जिब्रील उस से मुहब्बत करने लगते हैं फिर वह आसमान में पुकार के कहते हैंः बेशक अल्लाह तआला फलाने से प्रेम करते हैं तुम भी उस से प्रेम करो,पस आसमान वाले उस से प्रेम करने लगते हैं,फरमायाः कि फिर धरती में उस के लिये मक़बूल (प्रिय) होना लिख दिया जाता है।» (मुस्लिम),

इसी प्रकार जब अल्लाह तआला किसी से प्रेम करता है तो उस की अच्छी तरह से देख भाल करता है,और हर चीज़ को अपनी पैरवी बना देता है,उस के लिये हर कठिनाई सरल कर देता है और दूर को क़रीब कर देता है,और उस पर दुनियावी मामलों को आसान बना देता है जिस की वजह से वह थकावट और परेशानी महसूस नहीं करता,अल्लाह तआला ने फरमायाः {बेशक जो ईमान लाये हैं और जिन्हों ने नेक अमल किया है उन के लिये अल्लाह रहमान मुहब्बत पैदा कर देगा“।}[मरयमः 96].

जिस से अल्लाह तआला प्रेम करता है अपनी संगति उस के साथ कर देता हैः जब अल्लाह तआला बंदे से मुहब्बत करता है तो वह उस के साथ होता है उस की हिफाज़त करता है और उस की देख रेख करता है और किसी ऐसे व्यक्ति को मुसल्लत नहीं करता जो उसे तकलीफ या उसे नुक़्सान पहुँचायें,और हदीसे कुदसी में है,रसूलने फरमायाः «बेशक अल्लाह तआला ने फरमायाः जो मेरे महबूब से दुश्मनी करे मैं उस के संग युद्ध छेड़ देता हूँ,फ्राइज़ के अतिरिक्त मेरी प्रिय चीज़ों में से «किसी एक चीज़ के ज़रिये जब बंदा मेरी निकटता प्राप्त करता है तो उस से अधिक प्रिय मेरे लिये कोई चीज़ नहीं है,मेरे बंदे नवाफिल के ज़रिये मेरी निकटता प्राप्त करने की कोशिश में लगा रहता है यहाँ तक कि मैं उस से मुहब्बत करने लगता हूँ,और जब मैं उस से मुहब्बत करने लगता हूँ तो मैं उस का वह कान बन जाता हूँ जिस से वह सुनता है,वह आँख बन जाता हँू जिस से वह देखता है,वह हाथ बन जाता हूँ जिस से वह पकड़ता है और वह पैर बन जाता हूँ जिस से वह चलता है,अगर मुझ से माँगता है तो मैं उसे देता हूँ,और अगर मुझ से पनाह माँगता है तो मैं उस का अपनी पनाह में ले लेता हूँ,और मैं अपने फैसलों में से किसी भी चीज़ के करने उतना आगे पीछे नहीं होता जिस क़दर मोमिन बंदे की रूह निकालने में होता हूँ,क्यांेकि वह मौत को अप्रिय रखता है,और मुझे उस को कष्ट पहुँचाना नापसंद है» (बुखारी)

सच्चे ईमान में खुशियों का जीवन और अधिक प्रसन्नतायें हैं,जैसे अल्लाह के साथ कुफ्र में रूहों की मौत है और दुख ही दुख है।

जिस से अल्लाह तआला मुहब्बत करता है उस की प्रार्थना स्वीकारता हैः अपने मोंमिन बंदों से अल्लाह की मुहब्बत की दलीलों में से एक दलील यह है कि अल्लाह तआला उन की दलीलों को क़बूल करता है और जब वे आकाश की ओर हाथ उठा कर कहते हैंः हे हमारे रब तो उन पर अपनी नेमतों की वर्षा करता हैएअल्लाह तआला ने फरमायाः {और जब मेरे बंदे मेरे बारे में आप से सवाल करें तो कहदें कि मैं बहुत की क़रीब हँू,हर पुकारने वाले की पुकार को जब कभी भी वह मुझे पुकारे मैं क़बूल करता हूँ,इस लिये लोगों को भी चाहिये कि वे मेरी बात मानें और मुझ पर ईमान रखें,यह उन की भलाई का कारण है“।}[अल बक़राः 186].

और सलमान फारसी से रिवायत है,कहते हैंः रसूलुल्लाह ने फरमायाः «निःसंदेह अल्लाह तआला जीवित दाता है,जब बंदा उस की ओर अपने दोनों हाथ उठा कर माँगता है तो उन्हें खाली वापिस करने से वह लजाता है।» (त्रिमिज़ी).

जब अल्लाह तआला किसी बंदे से मुहब्बत करता है तो फरिश्तों को मुतय्यन कर देता है कि उस के लिये अल्लाह से क्षमा माँगें,फरिश्ते उस के लिये अल्लाह तआला से क्षमा माँगते हैं जिस से अल्लाह तआला मुहब्बत करता है और फरिश्ते उस के लिये अल्लाह तआला से दया माँगते हैं,अल्लाह तआला फरमाता हैः {अर्श के उठाने वाले और उस के आस पास के फरिश्ते अपने रब की तस्बीह तारीफ के साथ करते हैं और उस पर ईमान रखते हैं और ईमान वालांे के लिये इस्तिगफार करते हंै,कि हमारे रब तू ने हर चीज़ को अपनी दया और ज्ञान से घेर रखा है तो तू उन्हें माफ कर दे जो माफी माँगे और तेरे रास्ते की पैरवी करे और तू उन्हें नरक के अज़ाब से भी सुरक्षित रख“।}[ग़ाफिरः 7].

और अल्लाह तआला फरमाता हैः {क़रीब है कि आकाश अपने ऊपर से फट पड़े और सारे फरिश्ते अपने रब की तस्बीह अपने रब की प्रशंसा के साथ बयान कर रहे हैं और धरती वालों के लिये क्षमा याचना कर रहे हैं,खूब समझ रखों कि अल्लाह ही माफ करने वाला और दया करने वाला है“।}[अश्शूराः 5].

जब अल्लाह तआला किसी बंदे से प्रेम करता है तो उसे नेक काम पर जमा देता हैः रसूलुल्लाह ने फरमायाः «जब अल्लाह तआला किसी बंदे के साथ भलाई का इरादा करता है तो उसे लोगों में प्रिय बना देता है, पूछा गया प्रिय बना देता है इस का क्या अर्थ ? फरमायाः अल्लाह तआला उस की मौत से पहले उस पर भलाई के कामों को सरल कर देता है, फिर उस पर उसे जमाये रखता है।» (अहमद).

जब अल्लाह तआला किसी बंदे से प्रेम करता है तो मरते समय उस की सुरक्षा करता हैः

जब अल्लाह तआला किसी बंदे से प्रेम करता है तो मरते समय उस की सुरक्षा करता है और मरते समय उसे शांति प्रदान करता है और उसे हक़ पर जमाये रखता है,अल्लाह तआला अपने फरिश्तों को उस के पास भेजता है जो उस की जान को सरलता से निकालते हैं और मौत के समय उसे (ईमान पर) जमाये रखते हैं और उसे जन्नत की खुशखबरी सुनाते हैं,अल्लाह तआला ने फरमायाः {बेशक जिन लोगों ने कहा कि हमारा रब अल्लाह है फिर उसी पर जमे रहे उन के पास फरिश्ते आते हैं कि तुम कुछ भी भयभीत और दुखी न हो उस जन्नत की खुशखबरी सुन लो जिस का तुम से वादा दिया गया है“।}[फुस्सिलतः 30].

जब अल्लाह तआला अपने बंदे से प्रेम करेगा तो उसे हमेशा जन्नत में रखेगाः

जिस से अल्लाह तआला प्रेम करेगा उसे प्रलोक में अपनी जन्नत में रखेगा, जिस से अल्लाह तआला प्रेम करता है उस की उदारता उस पर इस प्रकार होगी जिस के विषय में कोई सोच भी नहीं सकता और न किसी के दिल में वह चीज़ आसकती है,अल्लाह तआला जिन से प्रेम करता है उन के लिये ऐसी जन्नत का वादा किया है जिस में वह सब होंगी जिस की लोग इच्छा करेंगे,जैसा कि हदीसे कुदसी में है,नबी ने फरमायाः «अल्लाह तआला ने कहाः मैं ने अपने नेक बंदों के लिये ऐसी चीजें़ तय्यार की हैं जिन्हें न तो किसी आँख ने देखी होगी और न किसी कान ने सुना होगा और न ही किसी आदमी के दिल में खयाल आया होगा,अगर चाहो तो यह (कुऱ्आन की आयत) पढ़ ला» {कोई पराणी नहीं जानता जो कुछ हम ने उन की आँखों की ठंडक उन के लिये छिपा रखी है“।}(बुखारी).

दुनिया में मज़ा नहीं मिल सकता मगर अल्लाह तआला की मुहब्बत और उस की पैरवी कर के, और न ही जन्नत में मज़ा मिल सकता है मगर अल्लाह तआला के दीदार से और उसे देख कर के।

अल्लाह तआला का बंदे से मुहब्बत करने के फलों में से एक फल बंदे का अल्लाह तआला को (स्वर्ग में) देखना हैः

अल्लाह तआला अपने जिन बंदों से मुहब्बत करता है उन के सामने अपना नूर प्रकट करके ज़ाहिर होगा,तो लोगों ने उस से उत्तम कोई चीज़ देखी ही न होगी,जैसा कि रिवायत में है कि नबी ने चैदहवीं की चाँद की ओर देख कर फरमायाः

«निःसंदेह तुम अपने रब को उसी प्रकार देखोगे जैसे तुम इस चाँद को देख रहे हो,तुम्हें उस के देखने में कोई परेशानी नहीं होगी,अगर तुम इस की ताक़त रख सको कि सूरज निकलने और सूरज डूबने से पहले वाली नमाज़ों को फौत होने न दो तो अवश्य ऐसा करो अर्थात इन नमाज़ों को न छोड़ो,फिर आप ने कुऱ्आन की ये आयत पढ़ी»ः {और अपने रब की पविन्नतागान तारीफ के साथ सूरज निकलने से पहले भी और डूबने से पहले भी करें“।}(बुखारी).

मुहब्बत के विषय में नियम और अलर्टः

1- अल्लाह तआला का किसी बंदे से प्रेम करने का यह अर्थ नहीं है कि उस पर मुसीबतें और आज़माइशें नहीं आयेंगीः रसूलुल्लाह ने फरमायाः «निःसंदेह बड़ा बदला बड़ी आज़माइश से मिलता है,और जब अल्लाह तआला किसी बंदे से मुहब्बत करता है तो उन्हंे आज़माता है,तो जो प्रसन्न हुआ उस के लिये प्रसन्नता है और जो नाराज़ हुआ उस के लिये अप्रसन्नता है।» (त्रिमिज़ी)

अल्लाह तआला बंदे को अनेक प्रकार की आज़माइशों में डालता है ताकि उसे गुनाहों से पाक साफ कर दे और उस के दिल को दुनियावी कामों से खाली कर दे,अल्लाह तआला ने कहाः {”और बेशक हम तुम्हारी परिक्षा लेंगे ताकि तुम में से जिहाद करने वालों और सब्र करने वालों को देख लंे,और तुम्हारी हालतों की भी जाँच कर लें“। [मुहम्मदः 31].

और अल्लाह तआला ने फरमायाः {और हम किसी न किसी तरह तुम्हारा इम्तेहान ज़रूर लेंगे,दुश्मन के डर से,भूक प्यास से,माल व जान,और फलों की कमी से,और सब्र करने वालों को खुशखबरी दे दीजिये,उन्हें जब कभी भी कोई कठिनाई आती है तो कहा करते हैं कि हम तो खुद अल्लाह के लिये हैं और हम उसी की ओर लौटने वाले हैं,यही हैं जिन पर उन के रब की रहमत और नवाजि़शें हैं और यही लोग सच्चे रास्ते पर हैं“।}[अल बक़राः 155-157].

2- बंदा जब अपने रब की नाफरमानी करता है तो मुहब्बत में कमी आ जाती है,और उस की पूर्णता खतम हो जाती है,ईमान की तरह मुहब्बत की असल और पूर्णता है,गुनाहों के एतबार से पूर्णता में कमी आती है,और जब बंदा संदेह और बड़े कपटाचार (नेफाक़) के दायरे में आ जाता है तो असल चली जाती है, बल्कि पूर्ण रूप से खतम हो जाती है,तो जिस के दिल में अल्लाह तआला की मुहब्बत नहीं होगी वह व्यक्ति काफिर,मुर्तद और पक्का मुनाफिक़ होगा,दीन में उस का कुछ हिस्सा बाक़ी नहीं रह जायेगा,अलबŸाा गुनहगारों के विषय में यह नहीं कहा जायेगा कि उन के अन्दर अल्लाह की मुहब्बत नहीं है बल्कि यह कहा जायेगा कि इन के दिलों में अल्लाह की मुहब्बत अधूरी है,इसी को देखते हुये उन से मामला भी किया जायेगा,नबी ने फरमायाः «यदि तुम गुनाह नहीं करोगे तो अल्लाह तआला ऐसी क़ौम को पैदा करेगा जो गुनाह करेंगे फिर अल्लाह तआला उन्हें क्षमा करेगा।»
(मुस्नदे अहमद)

3- अल्लाह तआला की मुहब्बत उस प्राकृतिक मुहब्बत के विपरित नहीं है जिस की ओर नफ्स का झुकाव होता है जैसे खाना पीना,महिलायें अदि,नबी ने फरमायाः «मेरे लिये दुनिया की दो चीज़ें महिलायें और खुशबू प्रिय बना दी गई हैं।» (अहमद),

”असली आज़ादी दिल की है जो शिर्क और इच्छाओं अथवा संदेह से आज़ाद हो,और असल बंदगी दिल की बंदगी है“

तो यहाँ दुनिया में कुछ चीज़ें ऐसी हैं जिन की मुहब्बत शिर्क नहीं है,क्यांेकि नबी ने उन से मुहब्बत की है,इस लिये इन्सान के लिये जायज़ है कि वह दुनियावी चीज़ों से मुहब्बत करे जब तक कि वे चीज़ें हराम न हों।

4- जिसने किसी से अल्लाह जैसी मुहब्बत की उस ने शिर्क किया,अल्लाह तआला फरमाता हैः {और कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अल्लाह के साझीदार दूसरों को ठहरा कर उन से ऐसे प्रेम रखते हैं जैसा प्रेम अल्लाह से होना चाहिये और ईमान वाले अल्लाह से प्रेम में सख्त होते हैं,काश कि मूर्तिपूजक जानते जब कि अल्लाह के अज़ाबों को देख कर सभी ताक़त अल्लाह ही को है और अल्लाह सख्त अज़ाब देने वाला है“।}
[अल बक़राः 165].

नबी ने फरमायाः «निःसंदेह अल्लाह के निकट सब से प्रिय कार्य अल्लाह के लिये मुहब्बत करना और अल्लाह के लिये नफरत करना है»(अहमद).

और आयत में उस व्यक्ति के लिये सखत धमकी है जिस का किसी से मुहब्बत करना इबादत और सम्मान के एतबार से अल्लाह की तरह हो,

अल्लाह तआला ने फरमायाः {कह दीजिये कि अगर तुम्हारे बाप,तुम्हारे बेटे और तुम्हारे भाई और तुम्हारी बीवियाँ और तुम्हारे वंश और कमाया धन और वह तिजारत जिस की कमी से तुम डरते हो और वे घर जिन्हें तुम प्यारा रखते हो यह तुम्हें अल्लाह और उस के रसूल और अल्लाह की राह में जिहाद से अधिक प्यारे हंै,तो तुम इन्तेज़ार करो कि अल्लाह तआला अपना अज़ाब ले आये“।}[अŸाोबाः 24].

और आयत में उस व्यक्ति के लिये सखत धमकी है जिस के निकट ये आठ चीज़ें अल्लाह तआला से अधिक प्रिय हों,और अनस से रिवायत है रसूलुल्लाह ने फरमायाः «तुम में से से कोई उस वक़त तक मोमिन नहीं हो सकता जब तक मैं उस के निकट उस की अवलाद,उस के बाप और सब लोगों से अधिक प्रिय न हो जाऊँ» (इब्ने माजा).

5- मोमिनों को छोड़ कर मुश्रिकों के प्रति वफादारी और प्यार जताना यह अल्लाह की मुहब्बत के विपरित हैः मुश्रिक के शिर्क और उस के (झूटे) दीन के कारण,अल्लाह के लिये मुहब्बत करना और अल्लाह के लिये नफरत करना ईमान का महान तथ्य (असल) है,अल्लाह तआला ने फरमायाः {मोमिनों को चाहिये कि ईमान वालों को छोड़ कर काफिरों को अपना दोस्त न बनायें,और जो ऐसा करेगा वह अल्लाह की किसी पक्ष में नहीं,लेकिन यह कि उन के किसी तरह की हिफाज़त का इरादा हो“।}
[आले इमरानः 28].

अल्लाह तआला ने मोमिनों को काफिरांे के संग सहकारिता (मुवालात) से मना किया है और यह स्पष्ट किया है कि जो ऐसा करेगा उसे अल्लाह तआला की मिन्नता से कुछ नहीं मिलेगा,मिन्न से सहकारिता और दुश्मन से भी सहकारिता दोनों एक दूसरे के विपरित हैंः {लेकिन यह कि उन के किसी तरह की हिफाज़त का इरादा हो“।}
[आले इमरानः 28].

और अल्लाह तआला ने उन से सहकारिता की अनुमति दी है जब कि इस बात का डर हो कि बिना सहकारिता के वे मुसलमानों को ठीक से रहने नहीं देंगे,तो उस समय ज़ाहिरी तौर पर उन से घुल मिल जाना जायज़ है जब कि दिल ईमान औैर काफिरों

की घृणा से संतुष्ट हो,जैसा कि अल्लाह तआला ने फरमायाः {उस के सिवाय जिसे मजबूर किया जाये और उस का दिल ईमान पर क़ायम हो“।}
[अन्नहलः 106].

प्यार की चमक

जब हमारे नबी को दुनियावी जीवन और अल्लाह तआला से मुलाक़ात के बीच चुनने को कहा गया तो आप ने फरमायाः «बल्कि मुझे तो ऊपर वाले रफीक़ (अल्लाह तआला) से मिलना है» (अहमद),

आप ने अल्लाह तआला की मुहब्बत और उस की मुलाक़ात को चुना और उसे प्रमुखता दी और दुनिया की हवस,आराम और उस की लज्ज़तोें की मुहब्बत पर मुक़द्दम किया।

अल्लाह तआला की मुहब्बत की निशानियांे में से उस का अधिकतर जि़क्र करना और उस से मिलने की इच्छा करना,जो किसी से मुहब्बत करता है उसे अधिकतर याद करता है और उस से मिलने को पसंद करता है ।

अल रुबय्य बिन अनस



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