3- एकेश्वरवादी व्यक्ति पर तौहीदे रुबूबियत का प्रभावः

 3- एकेश्वरवादी व्यक्ति पर तौहीदे रुबूबियत का प्रभावः

3- एकेश्वरवादी व्यक्ति पर तौहीदे रुबूबियत का प्रभावः

1- हैरानी और शक से मुक्तिः वह व्यक्ति कैसे हैरानो परेशान और शक में पड़ सकता है जो यह जानता हो कि उस का एक पालनहार है, और वही सभांे का पालनहार है, उसी ने उस को पैदा किया,उसे सुधारा,उसे सम्मान और प्रतिष्ठा दी, और उसे ज़मीन का खलीफा बनाया,आसमान और ज़मीन की सब चीज़ों को उस के वश में किया और उसे अपनी सब ज़ाहिरी और छिपी नेमतें दीं,अपने रब से वह संतुष्ट (मुतमइन) हुआ और उस की पनाह में आया,और यह समझ गया कि जीवन छोटा है जिस में अच्छाई बुराई के साथ,न्याय ज़ुल्म के साथ और स्वाद दर्द के साथ मिश्रित है.

और वह लोग जो अल्लाह तआला को रब नहीं मानते उस की मुलाक़ात को लेकर शक में पड़े हुये है उन का जीवन व्यर्थ है जिस में कोई आनंद नहीं,सारा जीवन परेशानी,हैरानी और लगातार ऐसे सवालों में घिरा हुआ है जिस का कोई जवाब नहीं,उन का कोई सहारा नहीं जिस की ओर वह पनाह ढूँडें,उन की बुद्विमŸाा कितनी अधिक क्यों न हो फिर भी उन की बुद्वियाँ हैरानी,संदेह,परेशानी और चिंता में हैं,और यही दुनियावी अज़ाब और जहन्नम है जो सुबह शाम उन के दिलों को झुलसा रहे हैं।

2- मानसिक शांतिः शांति का केवल एक स्थान है और वह अल्लाह और प्रलोक पर ईमान लाना है... ऐसा सच्चा ईमान जिसे संदेह और नेफाक़ (कपटाचारी) खराब और बरबाद न कर सकें,यही वास्तविकता है और तारीख भी इस की गवाह है, अथवा हर देखने वाला और अपने अथवा दूसरों के साथ न्याय करने वाला व्यक्ति इसे महसूस करता है, हमें इस बात का ज्ञान हो गया कि अधिकतर चिंतित,परेशान और तंग अथवा बेवकूफी और बरबादी के एहसास में मुब्तला लोग ही ईमान और यक़ीन की निधि (नेमत) से महरूम हैं उन के जीवन में न तो कोई आनंद है और न ही कोई मज़ा अगरचे उन का जीवन लज़्ज़तों और आराम देने वाली चीज़ों से भरा पड़ा है क्यांेकि वह इस के अर्थ को न जान सकते हैं और न ही उस के मक्सद को पहचान सकते हैं, और न ही जीवन के भेद को जान सकते हैं,जब बात यह है तो किस प्रकार उन के नफ्स को शांति और उन के सीने को सुकून मिल सकता है?! निःसंदेह यह शांति ईमान का फल है और तौहीद एक पविन्न पेड़ है जिस का फल अल्लाह की आज्ञंा से हर समय खाया जाता है,यह आसमानी

ठंडी हवा है जिसे अल्लाह तआला मोंमिनों के दिलों पर भेजता है ताकि जब लोगों के क़दम डगमगाने लगें तो वह जम जायें और जब लोग नाराज़ हों तो ये प्रसन्न रहें और जब लोग संदेह में पडे़ हों तो इन्हें यक़ीन हो और जब लोग वावेला करें तो यह धैर्य रखें और जब लोग गुमराह होने लगें तो ये सब्र के साथ जमे रहें.यही वह शांति है जिस ने हिज्रत के दिन नबी के दिल को ढारस दी थी, जिस की वजह से न तो आप चिंतित हुये और न ही दुखी,न तो आप डरे और न ही भयभीत हुये,न आप के सीने मंे संदेह आया और न ही चिंता, अल्लाह तआला ने फरमायाः {अगर तुम उस (रसूल मुहम्मद) की मदद न करो तो अल्लाह ही ने उस की मदद की उस समय जब काफिरों ने उसे (देश से) निकाल दिया था,दो में से दूसरा जब कि वह दोनों गुफा में थे,जब ये अपने साथी से कह रहे थे कि फिक्र न करो अल्लाह हमारे साथ है“।}[अत्तोबाः 40].

आप के मिन्न अबूबक्र सिद्दीक़ पर ग़म और डर के बादल छागये लेकिन यह डर अपनी ज़ात के लिये नहीं था बल्कि नबी और तौहीद की दावत के लिये था,यहाँ तक कि सिद्दीक़ ने जब दुश्मनांे को देखा कि वह गार को घेरे हुये हैं तो कहाः «ऐ अल्लाह के रसूल! अगर इन में से किसी ने भी अपना पाँव देखा अर्थात सर झुकाया तो वे हमें अपने क़दमों के नीचे देख लेगा,तो आप ने उन के दिल को सुकून पहँुचाने के लिये फरमायाः ऐ अबू बक्र तुम्हारा उन दो के बारे में क्या खयाल है जिन का तीसरा अल्लाह हो?!» (मुस्लिम),

और यह शांति अल्लाह की रूह है और ऐसा नूर है जिस की ओर आने से डरने वाले को आराम चिंतित को सुकून, दुखी को तसल्ली,थके हारे को विश्राम,कमज़ोर को शक्ति और असमंजस को हिदायत मिलती है.यह जन्नत की खिड़की है जिसे अल्लाह तआला अपने मोमिन बंदों पर खोलता है,उस से उस के लिये ठंडी ठंडी हवायें आती हैं और उस की चमक उन पर पड़ती है, और उस से महक और इन्न की खुशबू फूटती है,ताकि जो अच्छाई उन्होंने पहले भेजी है उस के बदले उन्हें कुछ आनंद चखाये,और जिन नेमतों का वह इन्तेज़ार कर रहे हैं उस का छोटा सा नमूना दिखाये,तो यह रूहें सुख, अनेक प्रकार के खाने अथवा सुरक्षा और शांति के मज़े लेंगे।

3- अल्लाह पर भरोसा करनाः हर एक चीज़ अल्लाह के हाथ में है,और उसी में सेः लाभ और हानि भी है,अल्लाह तआला ही पैदा करने

वाला है,वही जीविका देने वाला,मालिक और इंतेज़ाम संभालने वाला है, आकाशांे ओर धरती की कुंजियों का मालिक वही है, इस लिये कि जब मोमिन को इस बात का ज्ञान होगा कि उसे कोई भलाई,बुराई लाभ और हानि नहीं पहुँच सकती मगर जितना कि अल्लाह तआला ने उस के भाग में लिख दिया है,और जो कुछ अल्लाह ने लिख दिया है पूरी सृष्टि यदि उस के खेलाफ हो जाये तो कुछ नहीं कर सकती,उस समय मोमिन को विश्वास हो जायेगा कि केवल अल्लाह तआला ही अकेला लाभ और हानि का मालिक है,वही देने वाला भी है और रोकने वाला भी,और यह चीज़ हमें अधिक अल्लाह तआला पर भरोसा करने और तौहीद की महानता को स्वीकारने को अनिवार्य करती है,यही कारण है कि अल्लाह तआला उस बंदे की बुराई बयान करता है जो ऐसी चीज़ों की इबातदत करता है कि वे न तो उसे लाभ पहुँचा सकती हैं और न ही हानि और नही इबादत करने वाले के किसी काम आ सकती हैं,बरकत वाली है वह हस्ती जिस ने यह कहाः {आकाशांे ओर धरती की कुंजियों का मालिक वही है,और जिन जिन लोगों ने अल्लाह की आयतों का इन्कार किया है वही नुक़सान उठाने वाले हैं“।}[अज़्जुमरः 63].

4- अल्लाह की ताज़ीम करनाः और यह प्रभाव उस व्यक्ति के जीवन में ज़ाहिर है जो अल्लाह तआला पर ईमान लाता है, केवल उसी की इबादत और इरादा करता है, उसी के समीप अपनी भावनाओं को रखता है,और उसी से माँगता है,और जब मोमिन इस बात में विचार करता है कि आसमानों और ज़मीन की बादशाहत उसी के लिये है तो वह यह कहे बिना नहीं रह सकेगाः {मेरा रब हर चीज़ को अपने इल्म के दायरे में घेरे हुये है“।}[अल अन्आमः 80].

और कहेगाः {हे हमारे रब! तू ने यह सब बिना फायदे के नहीं बनाया“।}[आले इमरानः 191].

यह सारी चीज़ें इस बात का प्रमाण हैं कि दिल पैदा करने वाले पालनहार से जुड़ा हुआ है,और वह अल्लाह की प्रसन्ता के लिये मेहनत करता है, और इस बात की कोशिश में रहता है कि अल्लाह के क़ानून और उस के आदेश को सम्मान दे,और उन चीज़ों को अल्लाह का साझी न बनाये जो अपने लिये और दूसरों के लिये आसमान एवं ज़मीन में एक कण के भी मालिक नहीं हैं, और यह सब अल्लाह तआला के सम्मान के लिये है, और यह मोमिन के ऊपर तौहीदे रुबूबियत के प्रभाव का नतीजा है।

ईमान जीवन रक्षक नौका ह जो अल्लाह को काफी समझे लोग खुद उस की ओर झुक जायेंगे जब जब आप का लगाव अल्लाह तआला से कमज़ोर होगा तब तब आप खींच तान और वसवसों का शिकार बनेंगे. दिल की परेशानी अल्लाह तआला की ओर मुतवज्जेह होने से दूर होगी,और उस की घबराहट अकेले में उस के संग तअल्लुक़ जोड़ने से खत्म होगी, और उस का दुख रब को अच्छी तरह से जानने और उस के संग सच्चा सम्बंध जोड़ने से दूर होगा।

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