सब से पहले. व्यक्ति पर विशेष प्रभावः

 सब से पहले. व्यक्ति पर विशेष प्रभावः

सब से पहले. व्यक्ति पर विशेष प्रभावः

प्विन्नताः

अल्लाह तआला की तौहीद सब से अधिक उन बड़ी चीज़ों में से है जिस से मोमिन को पविन्नता प्राप्त होती है,इसी कारण अल्लाह तआला उस से प्रेम करता है,अल्लाह तआला ने फरमायाः {बेशक अल्लाह तआला माफी माँगने वाले को और पाक रहने वाले को पसंद करता है।}[अल बक़रा: 222].

और नबी ने फरमायाः «पविन्नता (तहारत) आधा ईमान है» (मुस्लिम),

पविन्नता (तहारत)आधा ईमान है,क्योंकि यह उस की एक महत्वपूर्ण कि़स्म है,और अल्ला तआला हर एक प्रकार की पविन्नता को प्रिय रखता है,चाहे वहः

1-मानवी तहारत होः

अर्थात नफ्स का अपराध,पाप के प्रभाव और अल्लाह के साथ शिर्क करने से पाक होना,और वह सच्ची तोबा और दिल को शिर्क, संदेह, हसद,कीना कपट और घमंड से पाक करके होगा, और यह पाकी प्राप्त नहीं होगी मगर अल्लाह के लिये इख्लास,भलाई,सहनशीलता,नम्रता,सत्यता और अमलों से अल्लाह तआला की प्रसन्नता के ज़रिये।

2-ऐन्द्रिक(हिस्सी) तहारत

अर्थात गंदगी और नापाकी को हटानाः

-गंदगी हटानाः

यह कपड़ों,शरीर,जगह और जो उस के हुक्म में है उस से गंदगी को पाक पानी से दूर करके होगा।

नापाकी को दूर करनाः

अर्थात नमाज़,कुऱ्आन की तिलावत,अल्लाह के घर का तवाफ अल्लाह तआला का जि़क्र या इस के अतिरिक्त के लिये वुजू़,गुस्ल और तय्म्मुम करना है।

नबी ने फरमायाः” पविन्नता (तहारत) आधा ईमान है“(मुस्लिम).

नमाज़ः

अल्लाह तआला की तौहीद उस नमाज़ में ज़ाहिर होती है जो बंदे और उस के रब के बीच लिंक है जिस में बंदा अपने रब की पैरवी, मुहब्बत, आजज़ी और विनम्रता का ऐलान करता है,इसी कारण शहादतैन के बाद यह सब से महान रुक्न है,और यह दीन का खंबा और यक़ीन की रोशनी है, इस से नफ्स को खुशी मिलती है,सीना खुल जाता है,और दिल को सुकून मिलता है,और यह बुराइयों से रोकती है,और गुनाहांे के मिटाने का ज़रिआ है,और यह विशेष प्रकार के आमाल हैं जो विशेष समय में अदा किये जाते हैं इस की शुरूआत तक्बीर से होती है और खतम सलाम पर।

और नमज़ छोड़ने वाला,उस का इनकार करने वाला अल्लाह और उस के रसूल को झुटलाने वाला और कुऱ्आन को नकारने वाला है,और यह असल ईमान के विपरित है,अलबŸाा जो व्यक्ति इस की अनिवार्यता को स्वीकारता है और सुसती और काहिली के कारण इसे छोड़ता है तो वह अपने आप को गंभीर धमकी और बडे़ जोखम में डालता है,नबी फरमाते हैंः «आदमी और शिर्क एवं कुफ्र के बीच(अलग करने वाली चीज़) नमाज़ का छोड़ना है» (मुस्लिम),

और दूसरे लोगों ने इसे कुफ्र कहा है परन्तु यह बड़ा कुफ्र नहीं है,बहर हाल या तो यह ऐसा कुफ्र है जो धर्म से निकाल देता है,या अधिकतर बड़ा गुनाह और हलाक करने वाली चीज़ों मंे अधिक बड़ी चीज़ है।

और नमाज़ के महान प्रभाव हैं जैसेः

आप ने फरमायाः «नमाज़ रोशनी है» (बैहक़ी).

1- नमाज़ बेहयाई और बुराइयों से रोकती है,अल्लाह तआला ने फरमायाः {जो किताब आप की ओर वह्य की गई है उसे पढि़ये और नमाज़ क़ायम कीजिये बेशक नमाज़ बेहयाई और बुराई से रोकती है,ओर बेशक अल्लाह का जि़क्र बहुत बड़ी बात है,तुम जो कुछ कर रहे हो उसे अल्लाह जानता है“।}[अल अनकबूतः 45].

2- नमाज़ शहादतैन के बाद सब से श्रेठ अमल है,अब्दुल्लाह बिन मसऊद की हदीस के कारण,

कहते हैंः «मैंने रसूलुल्लाह से पूछा कौन सा अमल श्रेष्ट है?आप ने फरमायाः समय पर नमाज़ पढ़ना,रावी कहते हैं मैंने कहा फिर कौन सा? फरमायाः माँ बाप के साथ नेकी करना,रावी कहते हैं मैंने कहा फिर कौन सा?फरमायाः अल्लाह के रास्ते में जेहाद करना» (मुस्लिम).

जिन चीज़ों से बंदा अल्लाह तआला की निकटता प्राप्त करता है उन में नमाज़ सब से श्रेष्ट है।

3- नमाज गुनाहों को धुल देती है,इस की दलील जाबिर बिन अब्दुल्लाह की हदीस है,कहते हैं रसूल ने फरमायाः «पाँच नमाज़ों की मिसाल तुम में से किसी के द्वार के सामने उस बहने वाली नहर की है जिस में वह हर दिन पाँच बार नहाता है» (मुस्लिम).

4- नमाज़ नमाज़ी के लिये दुनिया और आखिरत में नूर है,नबी नमाज़ के बारे में फरमायाः «जिस ने नमाज़ की पाबंदी की तो नमाज़ उस के लिये क़यामत के दिन नूर,प्रमाण,और मुक्ति बनेगी,और जिस ने उस की पाबंदी न की उस के लिये न तो नूर होगी,न प्रमाण होगी और न ही मुक्ति का सामान बनेगी,और वह क़यामत के दिन क़ारून,फिरओन,हामान,और उबै बिन खलफ के साथ होगा» (अहमद),

और नबी ने फरमायाः «नमाज़ नूर है» (बैहक़ी).

5-नमाज़ के ज़रिये अल्लाह तआला दरजों को बुलंद करता है,और गुनाहों को मिटाता है, इस की दलील रसूल के आज़ाद किये हुये गुलाम सोबान की हदीस है कि नबी ने उन से कहाः «अधिकतर सज्दा करो,क्यांेकि आप अल्लाह के लिये कोई सज्दा नहीं करंेगे मगर अल्लाह तआला उस से आप के एक दरजे को ऊँचा करेगा और उस की वजह से आप के एक गुनाह को मिटायेगा» (मुस्लिम).

6-नमाज़ नबी के साथ जन्नत में दाखिल होने के महान कारणांे में से है,इस की दलील रबीआ बिन काब अल असलमी की हदीस है,कहते हैंः

«मैंने रसूलुल्लाह के साथ रात बिताई,मैं आप के पास वूजू़ और क़ज़ाये हाजत का पानी लायाः आप ने मुझ से कहाः माँगो,मैंने कहा मैं जन्नत में आप की संगत चाहता हूँ,आप ने फरमायाः क्या इस के अतिरिक्त कोई और चीज़? मैंने कहाः बस यही,आप ने फरमायाः तो अधिकतर सज्दों के ज़रिये अपने नफ्स पर मेरी सहायता करो» (मुस्लिम).

7- निःसंदेह नमाज़ शक्तिमान अल्लाह और कमज़ोर बंदे के बीच लिंक है,ताकि कमज़ोर व्यक्ति शक्तिमान और मज़बूत अल्लाह तआला से शक्ति प्राप्त करे,और अधिकतर उसे याद करे,और उस से दिल लगाये,और यह नमाज़ के महत्वपूर्ण उद्देश्य में से है,अल्लाह तआला ने फरमायाः {और मेरी याद के लिये नमाज़ क़ायम कर“।}[ताहाः 14].

ज़कात नफ्स,धन और समुदाय की पविन्नता और विकास का कारण है।

ज़कातः

पविन्नता और विकास में से एकेश्वरवादी के नफ्स की पविन्नता है,ये उसे ऐसा बना देती है कि वह अपने माल की ज़कात देता है और उसे ज़कात देकर पविन्न करता है,ज़कात मालदारों के माल में वाजिबी हक़ है जो गरीबों और जो उन के हुक्म में हैं उन के बीच बाँटा जाता है,ताकि अल्लाह तआला की प्रसन्नता और नफ्स की सफाई प्राप्त की जाये अथवा ज़रूतमंदों पर एहसान किया जा सके।

और इस्लाम में ज़कात का अधिक महत्व है,इसी लिये ज़कात वाजिब करने की हिक्मत में इस के महत्व का स्पष्ट प्रमाण है,और इन हिक्मतों में विचार करने वाले को इस महान रुकन के महत्व और उस के महान प्रभाव का ज्ञान होगा,और इन प्रभाव (आसार) में सेः

1- मनुष्य की आत्मा को कंजूसी,लोभ और लालच से पविन्न करना।

2- ग़रीबों की सांतवना और ज़रूतमंदों,परेशान हाल और वंचित लोगों की ज़रूरतंे पूरी करना।

3-सार्वजनिक हित की स्थापना जिस पर उम्मत की जि़न्दगी और उन की खुशी पर निर्भर है।

4- मालदारों और तिजारत करने वालों के पास सीमित मान्ना में माल का होना ताकि धन किसी एक संगठन के पास सीमित न रहे या फिर वह मालदारों के बीच ही घूमता न फिरे।

5- यह मुस्लिम समुदाय को एक परिवार की तरह बनाता है जिस में शक्ति वाला आजिज़ पर और मालदार फक़ीर पर दया करता है।

6- लोगों के दिलों में अमीरों के बारे में जो क्रोध नाराज़गी,हसद और कीना कपट है इस बिना पर कि अल्लाह तआला ने उन्हंे पुरस्कार और जीविका दी है ज़कात उसे समाप्त करती है।

7-ज़कात विŸाीय अपराधों जैसे चोरी, डकैती और

लूटपाट के बीच रुकावट बनती है।

8- ज़कात धन में बढ़ोतरी करती है।

और किताबो सुन्नत के ग्रंथांे (नूसूस) में आया है जो ज़कात के वजूब का स्पष्ट प्रमाण हैं,और नबी ने बताया है कि यह इस्लाम के उस मज़बूत खंबों में से है जिन पर इस्लाम की बुनियाद है,यही कारण है कि यह दीन का तीसरा रुक्न है,अल्लाह तआला ने फरमायाः {और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात दो, और रुकू करने वालों के साथ रुकू करो“।}[अल बक़राः 43].

और अल्लाह तआला ने फरमायाः {और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात दो,और जो भलाई तुम अपने लिये आगे भेजोगे सब कुछ अल्लाह के पास पा लोगे,बेशक अल्लाह तुम्हारे अमल को देख रहा है“।}[अल बक़राः 110].

और मशहूर हदीसे जिब्रील में हैः «इस्लाम ये है कि तुम इस बात की गवाही दो कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई सत्य उपास्य नहीं और मुहम्मद अल्लाह के संदेष्टा हैं,और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात दो,रमज़ान के रोज़े रखो और अगर अल्लाह के घर जाने की (माली व बदनी) शक्ति हो तो उस का हज करो» (मुस्लिम),

और नबी ने फरमायाः «इस्लाम के पाँच आधार हैंः इस बात की गवाही देना कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई सत्य उपास्य नहीं और मुहम्मद अल्लाह के संदेष्टा हैं,नमाज़ क़ायम करना,ज़कात देना,हज करना और रमज़ान के रोज़े रखना» (बुखारी),

इस जैसे नुसूस इस बात का स्पष्ट प्रमाण हैं कि ज़कात इस्लाम के स्तंभों में से एक है,और उस के महान इमारतों में से है जिस के बिना इस्लाम अधूरा है।

रोज़ा (उपवास)

अल्लाह तआला ने रोज़ा को मशरू किया है, और उसे इस्लाम का स्तंभ बनाया है,रोज़ा कहते हैंः अल्लाह तआला की इबादत की निय्यत से रोज़ा तोड़ने वाली चीज़ों से दूर रहने को भोर से सूरज डूबने तक,अल्लाह तआला ने कहाः {और तुम खाते पीते रहो,यहाँ तक कि फज्र की सफेदी का धागा अंधेरे के काले धागे से वाज़ेह हो जाये,फिर रात तक रोज़े को पूरा करो“।}
[अल बक़राः 187].

बंदे के दिल में ईमान की स्थिरता और अल्लाह तआला की तौहीद उस चीज़ के अनुपालन का कारण है जिसे अल्लाह तआला ने उस व्यक्ति पर अनिवार्य किया है,अल्लाह तआला के इस कथन का अनुपालन करते हुयेः {ऐ ईमान वालो! तुम पर रोज़े फर्ज़ किये गये,जिस तरह से तुम से पहले लोगों पर फजऱ् किये गये थे,ताकि तुम तक़्वा का मार्ग अपनाओ“।}
[अल बक़राः 183].

एकीकृत (मुवह्हिद) को रोज़े से आनंद मिलता है और तेज़ गति से उस की ओर आगे बढ़ता है,सर्वशक्तिमान अल्लाह ने हदीसे कु़दसी में बयान किया हैः «आदम के बेटे का हर अमल उस के लिये है सिवाय रोज़े के क्यांेकि रोज़ा मेरे लिये है और मैं ही उस का बदला दूँगा» (बुखारी).

बंदे पर रोज़े के प्रभाव अनेक हैं,जिस में से एकः

अपने आप में ईमान के निर्माण के लिये रोज़ा एक स्कूल है.

1- रोज़ा बंदे और पैदा करने वाले (अल्लाह) के बीच एक भेद है जिस से मोमिन के दिल में सच्चे मुराक़बे का तत्व उजागर होता है,

क्यांेकि इस में किसी भी हालत से रियाकारी का प्रवेश करना असंभव है,इस लिये कि रोज़ा मोमिन के भीतर अल्लाह का मुराक़बा और उस का डर पैदा करता है,और यह महान उद्देश्य और ऊँचा लक्षय है जिस की प्रप्ति के अधिक लोग लोभी होते हैं.

2- रोज़ा उम्मत को सिस्टम,यूनियन,न्याय और समानता को प्रिय रखने का आदी बनाता है,और मोमिनों के भीतर दया और एहसान का भावना पैदा करता है,अथवा बुराइयों और भ्रष्टाचार से समुदाय की रक्षा करता है।

3- रोज़ा मुसलमान को अपने भाई के दर्द का एहसास दिलाता है,और रोज़ेदार को ग़रीबों और ज़रूरतमंदों के ऊपर खर्च करने के लिये उभारता है,तो इस प्रकार मुसलमानों के बीच मुहब्बत और भाईचारगी पाई जायेगी।

4- रोज़ा अपने आप पर क़ाबू पाने और जि़म्मेदारी और कष्ट सहने की व्यावहारिक प्रशिक्षण है।

5- रोज़ा मानव को गुनाह में पड़ने से बचाता है,और उसे उस के बदले अधिकतर भलाई मिलेगी,नबी ने फरमायाः «रोज़ा ढाल है,रोजे़दार गाली गलूज न करे,और जेहालत पर न उतर आये,और अगर कोई व्यक्ति उस से झगड़ा करे,या गाली गलूज करे तो कहे मैं रोज़े से हूँ,दो बार इस प्रकार कहे। उस ज़ात की क़सम जिस के हाथ में मेरी जान है,रोज़ेदार के मुँह की बू अल्लाह तआला के नज़्दीक मुश्क की खुशबू से अधिक पसंदीदा है,रोज़ेदार अपना खाना पीना और अपनी ख्वाहिश को मेरे लिये छोड़ देता है,रोज़ा मेरे लिये है,और मैं ही इस का बदला दूँगा,और एक नेकी दस गुना नेकी के बराबर होगी।» (बुखारी).

हजः

अल्लाह तआला की तौहीद हज में प्रकट होती है,और हज ऐसी इबादत है जिस से एकेश्वरवादी की तौहीद में बढ़ोतरी होती है,और ईमान संपूर्ण होता है,हाजी हज शुरू करते समय ही तलबिया पुकार कर तौहीद का एलान करता है,कहता हैः ” मैं हाजि़र हूँ, ऐ अल्लाह मैं हाजि़र हूँ, मैं हाजि़र हूँ तेरा कोई साझी नहीं,मैं हाजि़र हूँ“ बल्कि हज के हर काम में तौहीद का ऐलान करता है ताकि जब वह हज कर के वापिस आये तो गुनाहों से इस प्रकार पाक साफ हो जाये जैसे उस की माँ ने जना हो,उस के भीतर केवल सच्ची तौहीद रची बसी हो और वह उस का ऐलान भी कर रहा हो,और हज कहते हैं हज अदा करने के इरादे से हज के समय में अल्लाह के घर जाना,जैसा कि अल्लाह तआला की ओर से यह चीज़ आई है और रसूल ने स्वयं हज किया,और अल्ला के बंदों पर हज करना अनिवार्य है कऱ्ुआन,हदीस,सुन्नत और इज्मा इस का प्रमाण हैं।

बंदे के जीवन में हज के प्रभावः

नबी ने फरमायाः «काबा का तवाफ,सफा मरवा के बीच दौड़ना और जमरात को कंकर मारना अल्लाह तआला के जि़क्र के लिये ह» (अहमद).

1- गुनाहों और ग़लतियों के मिटाने का कारण है,नबी ने फरमायाः «क्या तुझे पता नहीं कि इस्लाम पिछले गुनाहों को मिटा देता है,और हिज्रत पिछले गुनाहों को मिटा देती है,और हज पिछले गुनाहों को मिटा देता है..» (मुस्लिम).

2- हज अल्लाह के आदेशों के अनुपालन का नाम है,बंदा अपनी बीवी और अपनी अवलाद को छोड़ता है,अपने कपड़े निकाल देता है,और अल्लाह के आदेशों का अनुपालन करते हुये अपने रब की तौहीद का एलान करता है,और यह अनुपालन का महान उदाहरण है।

3- हज अल्लाह तआला की प्रसन्नता और जन्नत में प्रवेश होने का कारण है,नबी ने फरमायाः ”हज्जे मबरूर का बदला जन्नत के सिवा कुछ नहीं“ (बुखारी,मुस्लिम)

4- हज लोगों के बीच न्याय और समानता के सिद्धांत का व्यावहारिक तौर पर दिखाने का नाम है,और वह उस समय जब लोग मैदाने अरफात के अन्दर एक स्थिति में खड़े होते हैं,दुनिया की किसी भी चीज़ के बीच कोई भेद भाव नहीं,बल्कि वे एक दूसरे से प्रतिष्ठत अल्लाह के तक़वा (अल्लाह का डर) और अपनी तौहीद के कारण होंगे।

5- हज में आपसी पहचान और सहयोग का सिद्धांत पक्का होता है अर्थात आपसी पहचान मज़बूत होती है,और प्रामर्श और विचारों का आदान प्रदान होता है,और इस में क़ौम की तरक्क़ी और उस के नेतृत्व (का़यदाना हैसियत) की बुलंदी है।

6-हज तौहीद और इख्लास की ओर बुलाता है, यह उन विशेषताओं में से है जो हज के बाद उस के संपूर्ण जीवन में झलकती हैं,वह केवल एक अल्लाह तआला ही को सत्य उपासक समझता है,और सिर्फ अल्लाह तआला से ही दुआ करता है।



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